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अपने अनुभव की एक छोटी सी विचार

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अपने अनुभव की एक छोटी सी विचार……..

आज मैं जो लिख रहा हु यह एक अपना निजी विचार और एक अनुभव है जो आप सभी के साथ साझा करना चाहता हु। उमीद करता हु आप इसे पढेंगे और ……..शुरू करते हैं।
जब हम अपनी पढ़ाई उस उम्र से शुरू करते हैं जब आप समझदार हो जाते है ,कहने का मतलब इतना ही जब आप सोचने के लायक हो जाते हैं ,क्या सही और क्या गलत और हमे क्या करना चाहिए और क्या नही ।तब आप के अंदर कुछ नया करने या बनने का समझ आती हैं। जिसके अनुसार आप अपनी पढाई जारी रखते हैं ।

लेकिन इसी क्रम में अपने व्यक्तिगत व्यवहार को भी बनाना होता है जिसे संस्कार कहा जाता। कहा जाता है संस्कार माता- पिता के द्वारा दिया जाता ।हमारे ख्याल से ये कहना बिल्कुल गलत नही होगा कि संस्कार माता पिता नही बल्कि बच्चा अपने आप अपने अंदर लाता है।

लेकिन ये भी कहा जाता है इस बच्चे की माँ बाप ने अच्छा संस्कार दिया है ।ये बात सही है ।लेकिन क्या ऐसा हो रहा कि माता पिता के द्वारा दिया गया संस्कार आपका बच्चा पालन कर रहा। हमे अपने अनुभव के अनुसार अधिकतम  तो नही कर रहे।

अधिकतम बच्चे वो है जो समझदारी की कमी तो है ही लेकिन इज्जत और सम्मान क्या होता इसमें वो शायद से नादान है ये उम्र के अनुसार बदल सकता है क्योंकि की उम्र के बढ़ने के साथ साथ समझदारी भी बढ़ जाती है।

हमे लगता है सम्मान देने के लिए अपने से छोटा या बड़ा का ख्याल नही आना चाहिए सभी सम्मान दे या की भी स्तर का व्यक्ति क्यो ना हो । कहा जाता है सम्मान दोगे तो सम्मान मिलेगा। यह सच है कि सम्मान देगे तो लोग आपका भी सम्मान करेगे। ऐसा करने से अपने आप में एक प्रकार से अच्छा अनुभूति होती है।

जब आप किसी को सम्मान करने के बारे में सोचेंगे या करेगे तो आप के अंदर आने वाली सभी नेगेटिव सोच खत्म हो जाएगी। क्योंकि आप के अच्छे के बारे में सोच रहे। कभी भी गलत करने का या किसी को अपमान करने का ख्याल नही आएगा।

इसके साथ ही अपने अनुभव के आधार पर कुछ बाते बताना चाहता हु। जो आप मे से किसी न किसी को फेस जरूर करना पड़ा होगा। हम बात उस समय का कर रहे है जब आप अपने घर से दूर किए अंजान जगह और अनजान लोगों के बीच रहने लगते है।

जब आप अपने घर या अपने घर क्षेत्र के अधीन होते है तो आप को सब कुछ अपने अनरूप दिखाई देता है।कि सब जगह है सब लोग लगभग ऐसे ही होते होंगे ।लेकिन ऐसा बिल्कुल नही है।

जब आप अपने घरों दे दूर और अपनों से दूर रहेंगे तभी आप इसके बारे में जान पाएंगे। इसके साथ ही अगर आप पढ़ने वाले है और आप अपने शहर से दूर है तो आप के साथ अनेको लोग मिलेंगे ।उनमे से कुछ अच्छे और कुछ ना समझ भी होंगे ।

इसी बात को अपने को बना कर रखना होता है।
लेकिन एक दौर आती है जब आप से बिल्कुल अलग विचार रखने वाले होते है उनकी अपनी मानसिकता होती है।किसी की अच्छी होती है तो किसी की बुरी भी।

अब आप को डिसाइड करना है आप उस माहौल में कैसे रहेंगे। यहां मैं अपनी एक बात कहना कहुगा। अगर आप कहि भी रहे किसी के साथ लेकिन दुसरो का सम्मान जरूर करे सामने वाला करे ना करे लेकिन आप इसका ख्याल जरूर रख्खे ।ये आप के ऊपर निर्भर करता है।आपका व्यवहार कैसा है।

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अच्छे विचार से ही हम अपने उद्देश्यों तक पहुंच सकते हैं

हमे अभी तक अपने अनुभव के आधार पर बहुत कुछ सीखा है। कहा जाता है पैर खीचने के बहुत लोग होते है और हाथ खीचने वाले बहुत कम। जब आप किसी की मद्त करगे तो आपको भी कोई न कोई किसी भी प्रकार से आपको भी मद्त मिलेगी।

हमे अभी तक के समय मे बहुत कम ही कम लोग मिले जो लगभग अच्छा विचार रखते है।कभी भी कही भी अच्छा ही बोलते हो।
मैं अपनी पिछेले 6 महीने से 1 साल तक कि बात करे तो हमे कोई ऐसा नही मिला जो हर वक्त या किसी के सामने या पीठ पीछे वही बात कहता हो ।ऐसे बहुत कम लोग मिलते है ।

सब कुछ मिलाकर यही कहता चाहता हु। सभी का सम्मान करें और दुरो के साथ अच्छा व्यवहार बनाने की कोशिश करे। ऐसा ना करे किसी को अपनान का सामना करना पड़े।

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जब हम अपनो कर बारे में गलत सुनते है तो खून खौल उठता है लेकिन जब वही बात किसी और के लिए कहा जाए ये कहि से भी उचित नही है। इस विचारधारा को बदलना चाहिए सभी के बारे में अपनी नियत साफ रखे। और मिलजुल कर रहने का प्रयास करे।

ऐसा भी नही हो सकता कि सब लोग एक विचारधारा के हो लेकिन कोशिश यही करनी चाहिए कि किसी के बारे में भी गलत बात ना करे।अगर अपनो के बारे में गलत सुनने का हैसियत नही है तो दुरो के बारे में भी गलत बोलने से बचे। यही बात आप को अलग बना सकती है।

मैं अपनी तरफ से पूरा प्रयास करता हु किसी को मेरे से कोई परेशानी ना हो ।

उपरोक्त सभी बातें लेखक की एक निजि विचार है और अपने अनुभव के आधार पर लिखा गया है। उपरोक्त बातो को समझना ना समझना आपकी अपनी मर्जी है।
उपरोक्त लिखे गए विचार में किसी भी प्रकार की त्रुटि है तो उसके लिए क्षमा चाहुगा।

जय हिन्द !

 

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